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Showing posts from December, 2019

मेरे जिस्म के चिथड़ों पर लहू की नदी बहाई थी मुझे याद है मैं बहुत चीखी चिल्लाई थी.

मेरे जिस्म के चिथड़ों पर लहू की नदी बहाई थी मुझे याद है मैं बहुत चीखी चिल्लाई थी बदहवास बेसुध दर्द से तार-तार थी मैं क्या लड़की हूँ, बस इसी लिये गुनहगार थी मैं कुछ कहते हैं छोटे कपड़े वजह हैं मैं तो घर से कुर्ता और सलवार पहनकर चली थी फिर क्यों नोचा गया मेरे बदन को मैं तो पूरे कपडों से ढकी थी मैंने कहा था सबसे मुझे आत्मरक्षा सिखा दो कुछ लोगों ने रोका था नहीं है ये चीजें लड़की जात के लिए कही थी मुझे साफ-साफ याद है वो सूरज के आगमन की प्रतीक्षा करती एक शांत सुबह थी जब मैं स्कुटी में बैठकर घर से चली थी और मेरी स्कुटी खराब हो गई थी तो स्कुटी के साथ कुछ मुल्लों की नियत भी खराब हो गई थी मैं उनके सामने गिड़गिड़ाई थी अलग बगल में बैठे हर इंसान से मैंने मदद की गुहार लगाई थी जिंदा लाश थे सब, कोई बचाने आगे न आया था आज मुझे उन्हें इंसान समझने की अपनी सोच पर शर्म आयी थी फिर अकेले ही लड़ी थी मैं उन हैवानों से पर खुद को बचा न पायी थी उन्होंने मेरी आबरू ही नहीं मेरी आत्मा पर घाव लगाए थे एक स्त्री की कोख से जन्मे दूसरी को जीते जी मारने से पहले जरा न हिचकिचाए थे खरोंचे जिस्म प...